
क्यों बीजेपी के लिए इस वर्ष बिहार और बिहारी बेहद महत्वपूर्ण हैं?
रविवार, 19 जनवरी 2020
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नई दिल्ली
इस वर्ष दो महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हैं- दिल्ली और बिहार में। बीजेपी के लिए दोनों राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह अपने क्षेत्रीय प्रसार पर जोर दे रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार विधानसभा का चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडी(यू) के साथ गठबंधन में रहकर लड़ने का ऐलान किया है। इससे स्पष्ट होता है कि कुछ राज्यों में चुनावी मात खाने के बाद बीजेपी अपनी महत्वाकांक्षा से तात्कालिक समझौता करने का मन बना चुकी है।
कई राज्यों में मिली मात
बीजेपी के हाथ से सबसे पहले 2018 में मध्य प्रदेश की सत्ता निकली, उसके बाद छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और झारखंड तक सिलसिला जारी रहा। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में भगवा दल को 303 सीटों का जबर्दस्त समर्थन प्राप्त हुआ और पिछले वर्ष ही महाराष्ट्र, झारखंड हाथ से निकल भी गया। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर मची रार में सबसे पुराने साथी शिवसेना के अलग हो जाने की खबर सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी।
बिहार का महत्व
राज्यसभा में बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को बहुमत नहीं है। इसी वर्ष बिहार से राज्यसभा की पांच सीटें खाली हो रही हैं। फिर 2022 में पांच और सीटें खाली होंगी। ऐसे में बीजेपी के हाथ से बिहार निकलने का मतलब है कि उसे राज्यसभा में भी तगड़ा झटका लगेगा। शिवसेना का साथ छोड़ने से उसके तीन राज्यसभा सांसदों का साथ भी एनडीए को नहीं मिलने वाला।
बिहारी होने का महत्व
दो दशकों से भी ज्यादा वक्त से बीजेपी दिल्ली की सत्ता से दूर है। राष्ट्रीय राजधानी में बिहारी वोटरों की बड़ी संख्या है। आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में बिहारियों की आबादी कुल 31 प्रतिशत है जो 2001 में 14 प्रतिशत थी। बिहार छोड़ने वालों की सबसे बड़ी आबादी 18.3 प्रतिशत दिल्ली आती है और इनमें 40 प्रतिशत यहां के दो जिलों नॉर्थ वेस्ट और वेस्ट में निवास करती है।
यही वजह है कि बीजेपी दिल्ली में भी जेडी(यू) को कुछ सीटें देने पर विचार कर रही है। इतना ही नहीं, उसने प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष भी भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी को बना रखा है। इन सब कवायद का मकसद पूर्वांचलियों (झारखंड, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश) को रिझाना है। कांग्रेस ने भी बिहार में अपने गठबंधन साथी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी कुछ सीट देने पर विचार कर रही है।
इस वर्ष दो महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हैं- दिल्ली और बिहार में। बीजेपी के लिए दोनों राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह अपने क्षेत्रीय प्रसार पर जोर दे रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार विधानसभा का चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडी(यू) के साथ गठबंधन में रहकर लड़ने का ऐलान किया है। इससे स्पष्ट होता है कि कुछ राज्यों में चुनावी मात खाने के बाद बीजेपी अपनी महत्वाकांक्षा से तात्कालिक समझौता करने का मन बना चुकी है।
कई राज्यों में मिली मात
बीजेपी के हाथ से सबसे पहले 2018 में मध्य प्रदेश की सत्ता निकली, उसके बाद छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और झारखंड तक सिलसिला जारी रहा। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में भगवा दल को 303 सीटों का जबर्दस्त समर्थन प्राप्त हुआ और पिछले वर्ष ही महाराष्ट्र, झारखंड हाथ से निकल भी गया। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर मची रार में सबसे पुराने साथी शिवसेना के अलग हो जाने की खबर सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी।
बिहार का महत्व
राज्यसभा में बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को बहुमत नहीं है। इसी वर्ष बिहार से राज्यसभा की पांच सीटें खाली हो रही हैं। फिर 2022 में पांच और सीटें खाली होंगी। ऐसे में बीजेपी के हाथ से बिहार निकलने का मतलब है कि उसे राज्यसभा में भी तगड़ा झटका लगेगा। शिवसेना का साथ छोड़ने से उसके तीन राज्यसभा सांसदों का साथ भी एनडीए को नहीं मिलने वाला।
बिहारी होने का महत्व
दो दशकों से भी ज्यादा वक्त से बीजेपी दिल्ली की सत्ता से दूर है। राष्ट्रीय राजधानी में बिहारी वोटरों की बड़ी संख्या है। आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में बिहारियों की आबादी कुल 31 प्रतिशत है जो 2001 में 14 प्रतिशत थी। बिहार छोड़ने वालों की सबसे बड़ी आबादी 18.3 प्रतिशत दिल्ली आती है और इनमें 40 प्रतिशत यहां के दो जिलों नॉर्थ वेस्ट और वेस्ट में निवास करती है।
यही वजह है कि बीजेपी दिल्ली में भी जेडी(यू) को कुछ सीटें देने पर विचार कर रही है। इतना ही नहीं, उसने प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष भी भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी को बना रखा है। इन सब कवायद का मकसद पूर्वांचलियों (झारखंड, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश) को रिझाना है। कांग्रेस ने भी बिहार में अपने गठबंधन साथी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी कुछ सीट देने पर विचार कर रही है।