
निर्भया के दोषियों को फांसी से पहले पवन जल्लाद बोले, खुद को समझाना पड़ता है कि दोषियों को दे रहे हैं सजा
रविवार, 19 जनवरी 2020
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नई दिल्ली,
निर्भया के साथ गैंगरेप और हत्या की जघन्य वारदात के 7 साल बाद दोषियों को फांसी की सजा होने वाली है। फिलहाल दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने दोषियों को फांसी के लिए 1 फरवरी की तारीख तय की है। जेल प्रशासन ने चारों को फांसी देने के लिएमेरठ के पवन जल्लाद को चुना है। आखिर किसी को फांसी देने पर क्या महसूस होता है और कैसे कर पाते हैं यह काम। ऐसे सभी सवालों के पवन जल्लाद ने एनबीटी को दिए हैं जवाब...
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वहीं बृहस्पतिवार को जेल प्रशासन ने पवन को आवश्यक निर्देश दिए। वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने काफी देर पवन से बात भी की। जब तक तिहाड़ जेल प्रशासन पवन को लेने नहीं आता तब तक पवन मेरठ जेल प्रश...+
निर्भया केस के दोषियों को फांसी देने के लिए आपकी क्या तैयारियां हैं?
पूरा मेरठ जेल प्रशासन इस मामले को लेकर सचेत है और मुझे पुलिस सुरक्षा भी दी गई है। इसके अलावा, पिछले दिनों मैं मेरठ जेल में फांसी देने की प्रैक्टिस भी कर चुका हूं। जब भी मुझे फांसी देने के लिए दिल्ली बुलाया जाएगा, तो मैं तुरंत तिहाड़ जेल के लिए रवाना हो जाऊंगा।
क्या आपने इससे पहले भी कभी किसी अपराधी को फांसी दी है?
मैं इससे पहले 5 लोगों को फांसी दे चुका हूं। 1988 में मैंने अपने दादा जी के साथ 5 लोगों को फांसी दी थी, जिसमें 2 अपराधियों को पटियाला में, 1 को आगरा में, 1 को जयपुर में और 1 को इलाहाबाद में फांसी दी थी। मेरे पिताजी ने भी दो लोगों को फांसी दी थी। लेकिन चार लोगों को एक साथ फांसी देने का यह पहला मामला है, जिसके लिए मुझे चुना गया है।
1988 के बाद आपने कभी फांसी नहीं दी?
इससे पहले मैं मेरठ जेल में निठारी मामले के अपराधी सुरिंदर कोली को फांसी देने वाला था। मैंने उसकी पूरी तैयारी भी कर ली थी, लेकिन आखिरी मौके पर उसकी फांसी को उम्रकैद में बदल दिया गया। बतौर जल्लाद अपराधियों को फांसी देने का यह पेशा हमारे यहां पिछली तीन पीढ़ियों से चला आ रहा है, पहले मेरे दादा जी फांसी देते थे, फिर मेरे पिता जी और अब मैं यह काम कर रहा हूं और मेरी अगली पीढ़ी भी यह खानदानी काम संभालने को तैयार है।
आपके भाइयों ने यह काम क्यों नहीं चुना?
इस काम के लिए काफी ट्रेनिंग लेनी पड़ती है। मैंने बचपन से ही अपने दादा से फांसी देने की ट्रेनिंग ली है। यही वजह है कि पिताजी के बाद मैंने ही उनकी विरासत को आगे बढ़ाया है। अगर मेरे भाई भी यह काम करना चाहेंगे, तो जब कभी मुझे किसी अकेले इंसान को फांसी देने के लिए बुलाया जाएगा, तो मैं उन्हें ट्रेनिंग दूंगा। यह कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए अपना दिल थामना पड़ता है, काफी ट्रेनिंग लेनी पड़ती है। फांसी देना हर किसी के बस की बात भी नहीं है।
आप किस उम्र से अपने दादाजी के साथ फांसी देने जाने लगे थे?
दादाजी के साथ मैं फांसी के तख्ते पर चढ़ने वाले कैदियों के पैर बांधा करता था। मैं अभी 54 साल का हूं। दादाजी के साथ तो मैं 22 साल की उम्र से ही फांसी देने जाने लगा था।
आजकल फांसी की सजा बहुत कम दी जाती है। इसे आप किस तरह से देखते हैं?
यह तो न्यायपालिका के ऊपर है कि किसको क्या सजा देनी है। मैं इस पर क्या कह सकता हूं। हम तो उसी के गुलाम हैं। न्यायपालिका से जो भी ऑर्डर मिलता है, हम वही काम करते हैं। अगर अदालत किसी को फांसी की सजा सुनाए, तो हमें उसे फांसी के तख्ते पर चढ़ाने में कोई गुरेज नहीं है।
फांसी का काम तो कभी-कभी आता है, इसके अलावा आप क्या काम करते हैं?
इसके अलावा मैं कपड़े का बिजनस करता हूं, क्योंकि 5 हजार रुपये में आजकल होता ही क्या है। इतने खतरनाक काम के भी सरकार हमें 5 हजार रुपये देती है। ऐसे में, हमें कोई दूसरा काम तो करना ही पड़ेगा।
फांसी देते वक्त क्या फीलिंग आती है?
फांसी देते वक्त मेरे दिमाग में सिर्फ यही रहता है कि यह हमारा काम है और हमें काम करना है। फीलिंग को देखेंगे, तो हम अपना काम ही नहीं कर पाएंगे।
फांसी देने के बाद क्या दिमाग में कभी इसको लेकर कुछ आता है?
नहीं, इसके बारे में हम बाद में बिल्कुल भी नहीं सोचते, क्योंकि अगर इतना ही सोचना होता, तो यह काम हम विरासत में लेते ही नहीं। अगर किसी अपराधी को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई, तो उसे फांसी देने में कोई गलत बात नहीं है। लेकिन अब हमारा यह काम दिल से करने का मन नहीं करता, क्योंकि हमें इस काम का वाजिब मेहनताना नहीं मिलता। मुझे हर महीने मेरठ जेल से महज 5 हजार रुपये मिलते हैं, जिसे बढ़ाकर 20 हजार करने के लिए मैंने सरकार को अर्जी दी हुई है।
आपकी अर्जी पर कोई सुनवाई नहीं हुई?
अधिकारी कहते हैं कि हम पांच हजार रुपये भी बिना किसी काम के ही दे रहे हैं। मैं कहता हूं कि अगर कोई फांसी का केस आएगा, तो मैं पीछे तो नहीं हट जाऊंगा। अब चार लोगों को मैं ही फांसी दूंगा, लेकिन इसके लिए वाजिब मेहनताना मिलना चाहिए। अब मुझे नहीं तो मेरे बच्चों को ही सरकारी नौकरी मिल जाए। इस समय तो हमारी यही हालत है कि अब हम इससे पीछे भी नहीं हट सकते और आगे तो हम बढ़ ही कहां रहे हैं।